कई रात तुम्हारी याद आती है न जाने क्यों .....? नहीं सो पाता हूँ रात भर न जाने क्यों ......? तुम्हारे उस नव यौवन को पाने की ललक तो नहीं ? नहीं नहीं मैं औरों सा नहीं , कुछ और चाहता हूँ , तुम जानती हो लेकिन अनजानी हो न जाने क्यों ..? मैं तुम को देखना चाहता हूँ , बात करना चाहता हूँ , लड़ना चाहता हूँ , रातों को सपने बुनता हूँ ... बस करवट बदलता हूँ .. वक्त न जाने कब बदलेगा , अभी बेरोजगार हूँ प्रेम के क़ाबिल नहीं , खता की है मैंने ,भोगने दो मुझे , बस भीगी पलकें हैं मेरी नव दुल्हन की तरह , कुछेक स्मृतियाँ संजोई हैं हृदयालय में ...। चन्द्र प्रकाश बहुगुना / माणिक्य