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मेरा हृदय

तुम सुन रही हो ना ?
मेरा हृदय मक्खन सा कोमल है ..
थोडा सा प्रेम की आँच से घी बन जाता हूँ ..
और थोडा गुस्से में ठोस पत्थर सा ।
लेकिन मैं पत्थर नहीं हूँ ..
मैं बस दिल से बुरा नहीं हूँ ।
बस गुस्से से लाल हो जाता हूँ कई बार क्योंकि
मुझे हर किसी की फ़िक्र होती है ।
तभी हर बार लोग फायदा भी उठाते हैं ..
मुझे बच्चा बनना पसन्द है ..।
अबोध , राग द्वेष से मुक्त ..
केवल प्रेम , लाड़ से युक्त ।
सुन रही हो ना तुम मैं बुरा नहीं हूँ ..।
थोड़ा बचपना है ..
मैं औरों सा नहीं । केवल अपने लिए सोचूं ..
बस सब के लिए सोचता हूँ ..।
मैं बच्चा हूँ मुझे बच्चा रहने दो ..
अनुरोध है ।
माणिक्य बहुगुना / पंकज / चंद्र प्रकाश

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प्रेम का सात्विक अर्थ

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।। तुम ।।

रंगे ग़ुलाब सी तुम ... सपनों का सरताज़ सी तुम ... मैं यों ही सो जाना चाहता हूँ .. जब से सपनों में आई हो तुम .... ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य