पर्यावरण दिवस के अवसर पर स्वचित्र समूह सक्रिय हुआ और पर्यावरण के प्रति अपना अपार प्यार भी दिखा ही दिया ।
हो भी क्यों ना !
इतनी जादती जो की है हम ने पर्यावरण से ।
एक कहावत तो सुनी ही होगी
"सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को गई"
लेकिन एक ही प्रश्न है कि हम बहुत ज़्यादा सीमित तो नहीं हो रहे ना?
शायद हाँ ।
माँ का दिवस , पिताजी का दिवस और पर्यावरण दिवस जैसे दिवस मनाना पड़ रहा है तो कितने सभ्य बन रहे हैं ये तो आप सब समझ ही सकते हैं ।
हाँ वैसे तो सही ही है . साल में 365 दिन होते हैं उस में से 364 दिन पर्यावरण का शोषण करो , नदियों को गंदा करो ,जंगल जलाओ । और फिर एक दिन कैंमरा लेकर कुछ फ़ोटो लेना और पर्यावरण के प्रति सान्त्वना प्रकट करना सही है क्या ?
बस कुछ वेदना थी प्रकट कर दी कुछ पंक्तियाँ रचीने का प्रयास
कई जंगल उजाड़ रहे हैं रुतबा -ईमान के लिए ,
किसी के पास नहीं है एक लकड़ी चूल्हा जलाने के लिए ।
किसी ने तो पहाड़ के पहाड़ खोद कर बेच डाले,
किसी को मिलता नहीं एक पत्थर चूल्हा बनाने के लिए ।
कई पानी बेच रहें हैं पैसे कमाने के लिए ,
किसी को एक बून्द मयस्सर नहीं प्यास बुझाने के लिए ।
चंद्र प्रकाश बहुगुना / माणिक्य / पंकज
सम्पर्क सूत्र संख्या -+९१७५०३७७२८७१
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