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युवा भारत बेरोजगार भारत

सरकारें आती हैं जाती हैं ,
बेरोजगार , बेरोजगार रह जाता है ,
सरकारें नौकरी निकलती हैं फॉर्म भरवाती है ,
फिर स्थगित या लम्बित कर देती हैं ,
कभी चाचा भतीजों के नाम पर कभी आरक्षण के नाम पर नौकरियाँ मिलती हैं ,
ना मैं किसी का चाचा न ही भतीजा न आरक्षण है मेरे पास , एक वोट जरूर है ,
मुझे बस सरकारों ने अपने हिसाब से यूज़ किया ,
मैं युवा हूँ ...
जिस युवा भारत की बात मोदी जी करते हैं ,
जिससे हम विश्व की महाशक्ति बनेंगे ,
  बेरोजगारी के दम पर , या लाखों की फीस देकर ?
  स्किल इंडिया क्या है ?
   जो स्किल्ड है उसे तो दीजिये नौकरी ।
   एम . टेक .का छात्र चपरासी की नौकरी करने को मजबूर है ,
   वर्मा जी , शर्मा जी के बच्चों के अलावा सब बेरोजगार हैं ।
  प्रतिभाशाली बच्चों को सुविधाएं , नौकरियां , वजीफ़ा ,
  साधारण बालक को ना दिशानिर्देश ना नौकरियां ना वज़ीफ़ा ,
  देश केवल प्रतिभाशाली बच्चों से ही नहीं वरन सब से चलता है ।
  हर तरफ पोस्ट खाली हैं .. इस में ना राज्य सरकारें सुनती हैं ना केंद्र ,
  युवा लड़ रहा है ये मेरी पार्टी वो तेरी ,
   तेरी से मेरी बेहतर , आक्षेप ,आरोप
   वो हीरो बने बैठे हैं ,
                   वो दुखती नब्ज़ में रखते हैं पैर ,
  

माणिक्य बहुगुणा

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प्रेम का सात्विक अर्थ

प्यार है क्या ? यह प्रश्न हर किसी के मन में आता होगा । कई लोग इसे वासना के तराजू से तौलने की कोशिश करते हैं और कई केवल स्वार्थपूर्ति लेकिन ये सब हमारी गलती नहीं है आधुनिक समाज के मानव का स्वभाव है । लेकिन प्रेम/प्यार इन चीजों से काफ़ी आगे है ,उदाहरण स्वरूप आप एक कुत्ते के पिल्ले से प्यार करते हैं तो आप उस से कुछ आश रखते हो क्या ?और एक माँ से पूछना कि उस का जो वात्सल्य तुम्हारे प्रति है उस प्रेम के बदले वह कुछ चाहती है क्या ? नहीं ना तो तुम इसे स्वार्थ के तराजू से तौलने की क्यों कोशिश करते हो ? मुझे नहीं समझ आता शायद ये मुझ जैसे व्यक्ति के समझ से परे है । और प्यार हम किसी से भी करें बस उसका नाम बदल जाता है --- एक बच्चे का माँ से जो प्यार होता है वह वात्सल्य कहलाता है । किसी जानवर या अन्य प्राणी से किया प्यार दया भाव या आत्मीयता का भाव जाग्रत करता है । अपनी बहन,भाई और अन्य रिश्तों में जो प्यार होता है वह भी कहीं ना कहीं आत्मीयता के अर्थ को संजोए रखता है । और हमारा प्रकृति के प्रति प्रेम उसे तो हम शायद ही शब्दों के तराजू से तोल पाएं क्योंकि उस में कोई भी स्वार्थ नहीं है बस खोने का म

।। तुम ।।

रंगे ग़ुलाब सी तुम ... सपनों का सरताज़ सी तुम ... मैं यों ही सो जाना चाहता हूँ .. जब से सपनों में आई हो तुम .... ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

"संस्कृत" तुझ से कौन नहीं चिरपरिचित

खग विहग करते गुण गान , शिष्य रखते गुरु का मान .. हमने पूजा तुझको वेद पुराण , स्वार्थ हित के लिए निकला नया नीति विज्ञान ।। उन्मूलन के लिए बन गए भाषा विज्ञान , क्यों मिलते हैं कुछ मृत अवशेष .. तुझ बिन क्या है औरों में विशेष , क्या नहीं था इसके पास ... क्या रही होगी हम को इससे आस , लेकिन तुझ से कौन नहीं चिरपरिचिय ।। हर घर में होता गुण गान .. हर साहित्य में होता मान ... फिर क्यों नहीं करते तेरा सजीव गान , क्यों वेद , पुराण उनिषद, षड्दर्शन में है मान .. लेकिन तुझ से कौन नहीं चिरपरिचित ।।