एक मुलाकात की आरजू थी ,
अब हर मुलाकात पहली सी लगती हैं
एक दूसरे को देखते रहने पर भी देखते रहने का मन हर बार होता है ,
हर छुवन सिमेट रखी हैं मन मंदिर में ,
मैंने दबा रखे हैं अंतस में कुछ पल स्कूटी के पीछे बैठने के ,
मेरा तुम को अंक में भर लेना का मन ,
तुम को तन से बाहर व तन से अन्दर महसूस करने का आनन्द ,
तुम्हारा सब कुछ सौप देने का प्रेम ,
समर्पण , त्याग , दया ,
मैं नहीं जानता इसका मैं हकदार हूँ या नहीं , लेकिन मैं कभी कभी खुद को अयोग्य मानता हूं ... ।
तुम प्रेम की पराकाष्ठा में मेरी देवी हो .. जिसे पत्थरों में या फूलों से नहीं ..
प्रेम से पूजा जा सकता है ...।
लेकिन मेरे जीवन के कई पहलुओं से तुम अनजान हो ... एक दम अनजान , एक शिशु की तरह ,
मैं एक असफ़ल व्यक्ति हूँ ,
जिसने बचपन से अब तक केवल सिख है ,
जिसने केवल जीवन में गलतियां की हैं जिसका भुकतान भी किया है ..।
मैं अक्षम भी हूँ हर क्षेत्र में , तुम सक्षम ,
कैसे हूँ तुम्हारे लायक मैं ?
नहीं जानता ..
लेकिन फिर भी तुम को हृदय से चिपकाये रखना चाहता हूं ..।
माणिक्य
प्यार है क्या ? यह प्रश्न हर किसी के मन में आता होगा । कई लोग इसे वासना के तराजू से तौलने की कोशिश करते हैं और कई केवल स्वार्थपूर्ति लेकिन ये सब हमारी गलती नहीं है आधुनिक समाज के मानव का स्वभाव है । लेकिन प्रेम/प्यार इन चीजों से काफ़ी आगे है ,उदाहरण स्वरूप आप एक कुत्ते के पिल्ले से प्यार करते हैं तो आप उस से कुछ आश रखते हो क्या ?और एक माँ से पूछना कि उस का जो वात्सल्य तुम्हारे प्रति है उस प्रेम के बदले वह कुछ चाहती है क्या ? नहीं ना तो तुम इसे स्वार्थ के तराजू से तौलने की क्यों कोशिश करते हो ? मुझे नहीं समझ आता शायद ये मुझ जैसे व्यक्ति के समझ से परे है । और प्यार हम किसी से भी करें बस उसका नाम बदल जाता है --- एक बच्चे का माँ से जो प्यार होता है वह वात्सल्य कहलाता है । किसी जानवर या अन्य प्राणी से किया प्यार दया भाव या आत्मीयता का भाव जाग्रत करता है । अपनी बहन,भाई और अन्य रिश्तों में जो प्यार होता है वह भी कहीं ना कहीं आत्मीयता के अर्थ को संजोए रखता है । और हमारा प्रकृति के प्रति प्रेम उसे तो हम शायद ही शब्दों के तराजू से तोल पाएं क्योंकि उस में कोई भी स्वार्थ नहीं है बस खोने का म
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें